कर परिश्रम हार कर भी ,
जो व्यक्ति है थकता नहीं,
उस ह्रदय में फिर कभी
उत्साह मरता है नहीं .
बर्फ, अंगारे बने
यदि ठान ले मन में इसे,
साम, दाम, दंड, भेद,
न कर सके विचलित जिसे.
सुख सभी सांसारिक हैं
करे ? कैसे ? किस लिए ?
गम की सिरोही ढाल पर
लड़ता रहा जिसके लिए ?
प्यार कितना मधुर है....!
कैसे कहें ? न जान कर ,
प्याले जहर के पी लियें
जिसने हों अमृत मान कर.
मुस्कराहट कह कहे ,
उदगार हैं खुशियों भरे,
माला पिरोनी आंसुओं की
हो जिसे वह क्या करे ?
एक राही है अकेला ?
रस्ते विकट लम्बे पड़े,
हर राह दुर्गम, ठौर निर्जन
जंगल सघन खतरे बड़े ,
सूत्र छोटा नहीं होता है ,
सफलता का कभी भी,
लगन पक्की, लक्ष्य हो स्पष्ट
तो होता मुश्किल नहीं भी ..
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~ शिव प्रकाश मिश्रा
(मूल कृति 26-05-1980)
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