आज कुछ राजनैतिक दलों ने, जिसमे कुछ का दिल पकिस्तान के काफी नजदीक हैं, ने मीटिंग कर पाकिस्तान को एक नया हथियार दे दिया है . राहुल की अगुआई में पढ़े गए एक वक्तब्य में पुलवामा के शहीदों के राजनीतिकरण के लिए सरकार की निंदा के गयी . यानी ४५ जवानों की शहादत के बाद सरकार को जैश के ठिकाने ध्वस्त नहीं करने चाहिए थे क्योंकि ऐसा न हो कि मोदी को कोई राजनैतिक फायदा हो जाये और उन्हें नुकसान.
राहुल की विद्वता पर तो किसी को कोई संदेह नहीं है, सभी जानते हैं किन्तु चन्द्र बाबू नायडू , ममता आदि को क्या कहा जाय जो आज राहुल के पिछलग्गू हो गए ? आज राहुल पाकिस्तान और हिन्दुस्तान दोनों जगह हेड लाइंस में हैं . पकिस्तान की सेना का खोया विश्वाश लौटने लगा है . हिन्दुस्तान के विपक्ष के समर्थन से उनके चेहरे पर मुस्कान आ गयी है. क्या देश को लोग वेबकूफ है जो ये नहीं समझ पाएंगे कि मोदी विरोध और राष्ट्र विरोध में क्या अंतर है ?
इसके पहले पकिस्तान द्वारा जितने भी आक्रमण / अतिक्रमण हुए , विपक्ष ने हमेशा सरकार का साथ दिया क्योकि यदि सरकार का मनोबल कमजोर होगा तो पकिस्तान के खिलाफ कोइ सख्त कदम नहीं उठाया जा सकेगा जिससे सैनिको का मनोबल टूटेगा और ये युद्ध जीता नहीं जा सकेगा .
आज सेना की जीत को विपक्ष ने लगभग हार में बदल दिया . ऐसे समय जब पूरा विश्व हिन्दुस्तान का समर्थन कर रहा है , हिन्दुस्तान का विपक्ष, हिन्दुस्तान के विरोध में उतर कर देश को शर्मसार कर रहा है .
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