1971 में गरीबी हटाओ नारे की चुनाव में मिली अभूतपूर्व सफलता के बाद राहुल गांधी ने ऐलान किया है कि यदि कांग्रेस पार्टी सरकार में आती है तो न्यूनतम आय की एक नई योजना लागू करेगी इसके अंतर्गत २० % यानी २5 करोड़ लोगो के अधिकतम रु.६००० प्रतिमाह और इस तरह साल में 72 हजार उनके खाते में डाले जाएंगे . इस तरह सरकार प्रतिवर्ष 3 हजार करोड़ रुपए खर्च करेगी और यदि उनकी सरकार 5 वर्ष चलती है तो यह खर्च 18 लाख करोड़ से भी अधिक आएगा. समझना मुश्किल है कि योजना कैसे चलेगी ? कैसे लागू की जायेगी ? और इसके लिए धन कहां से आएगा ?
वर्तमान भाजपा सरकार ने 2016- 17 के आर्थिक सर्वेक्षण में एक न्यूनतम आय योजना या यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम का प्रस्ताव दिया था . इस पर बहस भी हुई थी . इस योजना का पाइलट मध्यप्रदेश के कुछ जिलों में किया गया था . संभवतया जमीनी स्तर पर इसे बहुत अधिक सफल नहीं पाया गया इसलिए ये योजना पर आगे विचार नहीं किया गया . वैसे ये कोई मौलिक योजना नहीं है . यूनिवर्सल बेसिक स्कीम कई देशों में लागू की गई है और उसमें बहुत सारी खामियों की वजह से इसे बंद किया गया .
२०१६-१७ के आर्थिक सर्वेक्षण में यूनिवर्सल बेसिक इनकम को प्रस्तावित करते हुए कहा गया था जो कार्यक्रम आजकल चलाए जा रहे हैं, भ्रष्टाचार, आवंटन में गलतियां, पात्र लोगों को वंचित करने भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं के कारण, ये योजना शायद एकमात्र उपाय बचा है . इस योजना के अंतर्गत प्रतिवर्ष ₹12000 बेसिक इनकम प्रत्येक परिवार को दी जाने की प्रस्तावना की गयी थी . इससे कुछ वर्षों में गरीबी कम होने की आशा की गई थी . अनुमान के अनुसार शुरुआत में २२ प्रतिशत आबादी को इसमें शामिल करने की बात की गई थी हालांकि राहुल गांधी द्वारा घोषित योजना लगभग वैसी ही है , नयी योजना दिखाने के लिए थोड़े बहुत बहुत चेंज किए गए हैं. जैसे 22% आबादी की जगह २०% . आय को घटाकर ₹6000 किया गया है और इस तरीके से ₹72000 प्रति वर्ष देना प्रस्तावित किया गया है. यदयपि चयन की प्रक्रिया, पात्रता, वित्त प्रबंधन आदि पर विस्तार से कुछ नहीं दिया गया है पर ये सब बहुत ही मुश्किल काम है . इसके दुष्प्रभावों में राजकोषीय घाटा बढ़ना तय है , जिसके कारण मुद्रास्फीति पड़ती है और महंगाई बढ़ती है. सबसे अधिक नकारात्मक प्रभाव यह है कि इससे लोगों को काम करने की प्रवृत्ति कम होती है और उत्पादकता प्रभावित होती है और इस तरह से यह राष्ट्रीय उत्पादकता पर भी बहुत बुरा प्रभाव डालती है. यूनिवर्सल बेसिक स्कीम का अनुभव दुनिया के अन्य देशों में भी बहुत अच्छा नहीं रहा है क्योंकि राजनैतिक मुद्दा बनाने के हिसाब से इसमें थोड़ी बहुत सफलता मिली जरूर पर जनता ने ज्यादातर देशों में इसे नकार दिया.इसके पहले इस इस इस योजना को कई देशों में लागू किया गया लेकिन इन्हें सफल नहीं पाया गया और कई देशों ने योजनाओं को वापस ले लिया जर्मनी ने कई साल के बाद योजना को बंद कर दिया स्विट्जरलैंड और हंगरी जैसे देशों ने लागू करने के बाद भी कर बंद किया . इस स्कीम का विस्तृत विवरण 2016-17 के संसद में पेश किये गए आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के चैप्टर ९ और पेज संख्या 173 से 195 तक में किया गया है.
नकल में अकल का सामान्यतया उपयोग नहीं किया जाता हैं, इसलिए भी और योजना के थोडा अलग दिखाने के चक्कर में राहुल गांधी ने कई महत्त्व पूर्ण चीजों को छोड़ दिया है . इस योजना से गरीबी दूर करने की नहीं वरन वोटों की खेती में पैदावार बढाने का प्रयास ज्यादा लगता है.
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