Thursday, June 2, 2011

ऋतुराज बसंत ( मधुमास )

अरे तुम फिर आ गयी ऋतुराज,


बहाती सुंदर सुरभि सुवास,

बिखेरा कैसा ये उन्माद,

लगाती हो मुझसे कुछ आश,

ओट में सुन्दरता के हो,

बुना है कैसा दुर्गम जाल,

फंस गए सब ही अपने आप,

टेक तेरे घुटुनो पर भाल,

रुचेगी कैसे सुन्दरता,

रिस रहे जिसके घाव हरे

हो रहा हो काँटों से प्यार ,

उसे क्या गंध सुगंध करे,

चाहिए नहीं मुझे सुख चारू,

अगर हो निर्जन कोई ठौर,

रहूँगा भी कैसे मैं वहां

जहाँ हो मानवता ही गौड़,

बुझी हो आंसू से जो प्यास

न आएगा उसको मधु रास,

लगा दो अपना सारा जोर,

न होगा मुझको अब विश्वाश.



########### शिव प्रकाश मिश्र ###########



(मूल कृति दिसम्बर १९७९ - सर्व प्रथम दैनिक वीर हनुमान औरैय्या में प्रकाशित)

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