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Friday, January 27, 2012

एक कंधे की चाहत

क्या कभी कोई
अपना सिर
अपनी ही गोद में रख कर सोया है ?
या
अपना सिर
अपने ही कंधे पर रख कर रोया है ?
क्यों ? कोई ?
नहीं  चाहता कभी,
अपना सुख दुःख,
स्वयं में समेटे रखना ?
अपने में जीना ?
अपने में मरना ?
और गुमनामी लपटे रखना ?
क्यों ?
इसीलिए
क्या ?,
रिश्ते  जन्म लेते हैं ?
और
हमेशा  अहम् होते हैं ?
रिश्ते ...?
अंकुरित होते हैं ?
उगते हैं ?
पनपते हैं ?
बनते हैं ?
या प्रकट होते हैं ?
पता नहीं,
क्यों ?
परन्तु हमेशा 
अच्छे लगते हैं ?
और जरूरी भी  ?
क्यों ?
शायद..कुछ को 
हम कभी नहीं समझते  ?
और कोशिश ?
भी नहीं करते  ?
भटकते है ?
लिये  
एक कंधे की चाहत,  
और
अपना कन्धा खाली रखने की आदत,  
क्यों ?
बने रहना चाहते हैं ?
हम बीज
सब  आत्मसात हैं जिसमे ? ,
ऐसा रिश्ता 
जड़, तना और पत्ते
सब साथ साथ है जिसमे ?
क्यों ?
फिर सब मिल बनाते है ?
एक  नन्हा पौधा,
बढ़ना जिसकी  नियति है ?
और
बढ़ कर दूर दूर हो जाना ?
या
दूर दूर होकर  बढ़ जाना ?
जिसकी परिणित है,
क्यों ?
दोहराया जाता है ? 
बार बार ...
ये इति ! हास ?
इतिहास ? जो  नहीं है.
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 -  शिव प्रकाश मिश्रा