Thursday, June 2, 2011

भीड़

भीड़ ही भीड़ है.


मेरे चारो तरफ भीड़ है,

मनुष्यों का रेला सडको पर,

बिखरा है,

शोरगुल में खड़ा

पुकारता हूँ मै,

किसी को,

पर मेरी आवाज़ शोर में घुल रही है,

शायद

कोई नहीं सुन सकता.

रूप रंग और गंध

सभी नकली हैं,

कोई नहीं मिल सकता.

मै नहीं समझता

सब ये कैसे करते हैं,

प्रकृति में मिलावट कैसे करते हैं,

मै नहीं चाहता,

कोई मुझे प्यार करे,

पर मेरी भावनाओं का

तिरस्कार न करे.

जरूरी नहीं कोई मेरा अनुन्याई हो,

पर व्यर्थ के विचार

मुझ पर न लादे,

क्योंकि

मुझे रोशनी चाहिए,

चमक नहीं !!

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शिव प्रकाश मिश्र

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